रामदेवजी के अद्भुत व्यक्तित्व से बहुत सी अलौकिक घटनाओं को जोड़ा जाता है, जिनमें उनका सम्पूर्ण जीवन समाविष्ट हो गया है। कुछ बहुश्रुत ‘पर्चे’ (चमत्कारिक घटनाएं) क्रमशः दिये जा रहे हैं।
पहला पर्चा – माता मैणादे का संशय निवारण :
अजमालजी को तो विश्वास हो गया था कि द्वारकापुरी में दिए गए वरदान के अनुसार भगवान् श्री कृष्ण ने हमारे घर में अवतार लिया है। किन्तु कहा जाता है कि माता मैणादे के मन में कुछ सशय रह गया था, जिसे जानकर रामदेव बालक ने उन्हें अपना पहला पर्चा (प्रथम चमत्कार) इस प्रकार दिया कि जब मैणादे अपने दोनों बालकों को स्तन-पान करा रही थी और सम्मुख ही रसोईघर में दूध गर्म हो रहा था, जो उफनने लगा, उसे रामदेवजी ने अपने अलौकिक चमत्कार से वहीं पर रोक दिया और बर्तन चूल्हे से नीचे उतार दिया” जिसके फलस्वरूप मैणादे ने भी उन्हें अवतार मान लिया। इस प्रसंग में यह उल्लेख भी मिलता है कि रामदेवजी जब सात दिन के हुए तो उन्होंने माता मैणादे को पूर्वोक्त ‘पर्चा’ दिखाया था।
दूसरा पर्चा – दर्जी को चमत्कार दिखाना’ :
कहा जाता है कि रामदेवजी ने बचपन में घोड़े पर घूमने का हठ किया। बालक को बहलाने हेतु मैणादे ने अपने दर्जी को बुला कर उसे एक घोड़ा बनाने के लिए कीमती कपड़ा दे दिया। दर्जी जब घोड़ा बना कर लाया तब रामदेवजी उस पर बैठे और बैठते ही वह घोड़ा आकाश मार्ग से उड़ गया। इस घटना से मैणादे और अजमाल बहुत दुखी हुए। उन्हें दर्जी पर संशय हुआ कि उसने कोई जादू का घोड़ा बना दिया है। दर्जी के बार-बार मना करने परभी उन्होंने उसे कैद में डाल दिया। रामदेवजी को परमेश्वर मान कर बिचारा दर्जी जब मन ही मन प्रार्थना करने लगा कि हे प्रभु! आपका खेल मेरे लिए मृत्यु बन रहा है, आप मझे क्षमा करो और इस यातना से मुक्त करो। तभो रामदेवजी आंगन में खेलते हुए प्रकट हुए और उनका वह घोड़ा आंगन में खड़ा दाना खाता हुआ दिखाई दिया। दर्जी को जब कैद से मुक्त किया गया तब वह रामदेवजी के चरणों में गिर पड़ा। रामदेवजी बालक ने अपनी तुतली बाणी में यह कहा कि आपको यह दण्ड इसलिए भोगना पड़ा कि आपको घोड़ा बनाने हेतु नया कपड़ा दिया गया था, किन्तु आपने उमर का कपड़ा नया रखा और अन्दर पुराना भर दिया। ‘अन्दर खोटा और बाहर ऊजळा’ करने वालो को दण्ड मिलना ही चाहिए। उसी दिन से वह दर्जी उनका भक्त बन गया और ईमानदारी से अपनी जीविका कमाने लगा।
तीसरा पर्चा – भैरव राक्षस का वध :
‘अवतार का कारण : भैरव राक्षस का वध’ शीर्षकान्तर्गत प्रस्तुत प्रसंग का सविस्तार विवेचन किया जा चुका है। वस्तुतः भैरव राक्षस के आतंक से त्रस्त जनता के परित्राण हेतु रामदेवजी अवतरित हुए और उजड़े हुए पश्चिमी क्षेत्र (पोकरण) को आबाद किया –
“जिण कारण हर अवतरै सिमरथ बात सई।
भौम बसावै पिछम री,दलसी दैत दई।।
चौथा ‘पर्चा’ – सारथीया खाती को पुनर्जीवित करना :
इनका एक बाल सहचर सारथीया ग्राम रूणीचा (रामदेवरा) का रहने वाला था। एक दिन सवेरे खेल के समय खाती पुत्र सारथीया को अपने सखाओं के बीच नहीं देख कर रामदेवजी ‘दौड़े हुए अपने मित्र के घर पहुंचे तथा उसकी मां से सारथीया के बारे में पूछा तब ही सारथीया की मां बिलखती हुई कहने लगी कि सारथीया अब इस संसार में नहीं रहा। यह अब केवल स्वप्न में ही मिल सकेगा। रामदेवजी सारथीया की मृत देह के पास पहुंच कर उसकी बांह पकड़ कर उठाते हुए बोले कि ‘हे साथी! तूं क्यों रूठ गया? तुम्हें मेरी सौगन्ध है, तू अभी उठ कर मेरे साथ खेलने को चल’। रामदेवजी की कृपा से सारथीया उठ कर उनके साथ खलेने को चल पड़ा।’
पांचवा ‘पर्चा’ – बोयता महाजन के डूबते हुए जहाज को बचाना :
यह लोक प्रसिद्ध कथा है कि रामदेवरा (रूणीचा) निवासी बोयता नामक महाजन रामदेवजी के परामर्श से व्यापार हेतु विदेशों में गया। उसे रामदेवजी ने आश्वासन दिया गया था कि किसी भी संकट के समय उसकी हर संभव सहायता जायेगी। कुछ समय पश्चात् बोयता सेठ विदेशों से मालामाल होकर वापिस लौट रहा था। जहाज में बैठा हुआ जब वह अपने भावी जीवन की रूपरेखा बना रहा था – जिसके अनुसार रूणीचा छोड़ कर किसी बड़े शहर में व्यवस्थित होकर इस पूंजी द्वारा व्यापार आदि करने का लक्ष्य था – तब तूफान आया और अपने जीवन को संकट में पाकर बोयता सेठ ने रामदेवजी का स्मरण किया। उस समय रामदेवजी रूणीचा में अपने भाई वीरमदेव के साथ बैठे चौपड़ खेल रहे थे। अपनी अलौकिक शक्ति से उन्होंने बोयता सेठ की विपत्ति जान ली, एवं अपनी अदृश्य भुजा पसार कर उसके डूबते हुए जहाज को बचा दिया।’ अपने गांव रूणीचा में आते ही बोयता आभार प्रकट करने के लिए रामदेवजी के पास गया, उनके उपहार स्वरूप वह विदेशों से एक हार लाया था, किन्तु जिस समय तूफान आया था उस समय वह हार उसके पास से खो गया था। उसने अपने इस दुःख को रामदेवजी के सम्मुख प्रकट किया। तब रामदेवजी ने मुस्कुराते हुए अपनी जेब से वही हार निकाल कर सेठ को दिखाया और कहा कि “तुम्हारे स्मरण करने पर मैंने तुम्हारी जहाज को बचाई और अपना हार उठा लिया।” सेठ श्रद्धा से नतमस्तक हो गया, तथा रूणीचे में रह कर जनता की सेवा करते हुए जीवन व्यतीत करने का संकल्प किया।
छठा पर्चा – लखी बनजारा को चमत्कार दिखाना :
कहा जाता है कि एक बनजारा मिश्री की ‘बाळद’ लेकर रूणीचा होते हुए आगे जा रहा था। जब रामदेवजी द्वारा पूछा गया कि ‘बाळद’ में क्या है, तो बनजारे में बिक्री कर के भय से मिश्री के स्थान पर नमक बता दिया। अन्य किसी गांव में पहुंचने पर जब बनजारे ने किसी सेठ को मिश्री बेचने के उद्देश्य से बोरी खोली तो मिश्री के स्थान पर नमक था। यह दौड़ा-दौड़ा पुन: रूणीचा पहुंचा और रामदेवजी के चरणों में गिर कर क्षमायाचना की, तथा भविष्य में मिथ्या न बोलने की प्रतिज्ञा की। इस पर रामदेवजी ने नमक को पुन: मिश्री में परिवर्तित कर के बनजारे को आश्वस्त किया।
सातवा पर्चा – पांच पीरों को :
मक्के के पीरों को चमत्कार दिखा कर रामदेवजी पीरों के पीर कहलाये।
आठवां पर्चा – पूगलगढ़ के पड़िहारों का गर्व नाश करना :
रामदेवजी की बहिन सुगना का विवाह पूगळगढ़ के कुंवर किशनसिंह पड़िहार के साथ हुआ था। इन पड़िहारों को जब यह ज्ञात हुआ कि रामदेवजी शूद्र लोगों के साथ बैठ कर हरिकीर्तन किया करते हैं, तो इन्होंने रामदेवजी के वहां अपना आना-जाना बन्द कर दिया तथा उन्हें हेय दृष्टि से देखने लगे।
रामदेवजी ने अपने विवाह के उत्सव पर रतना राईका को पूगळगढ़ भेज कर सुगना को बुलाया, तब सुगना के ससुराल वालों ने सुगना को भेजने के बजाय रतना राईका को कैद कर लिया और उसकी ऊंटनी को फाटक में बंद कर दिया। सुगना को इस घटना से बहुत दुःख हुआ और वह अपने महल में बैठी-बैठी विलाप करने लगी।
रामदेवजी ने अपनी अलौकिक शक्ति से सुगना का दु:ख जान लिया और पूगळगढ़ जाने की तैयारी करने लगे। उनके तेल चढ़ चुका था इसलिए सब ने उन्हें जाने से रोका किन्तु वे नहीं रुके। उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति द्वारा एक सेना तैयार की और तत्काल पूगळगढ़ में पहुँच कर युद्ध का शंखनाद किया।’ पुगळगढ़ के पड़िहारों और रामदेवजी की सेना के बीच युद्ध हुआ। रामदेवजी के दैविक पराक्रम से समस्त पूगळगढ़ कंपित होने लगा। युद्ध में हार कर पड़िहारों ने आत्मसमर्पण कर दिया। रामदेवजी ने उन्हें क्षमा किया और समझौता स्वीकार कर लिया एवं वापिस लौट आये। पड़िहारों ने सम्मानपूर्वक रथ में बैठा कर सुगना को रतना राईका के साथ पीहर के लिए रवाना कर दिया।
नवां पर्चा’- नेतलदे की पंगुता दूर करना :
नेतलदे का विवाह रामदेवजी के साथ हआ था।’ यह अमरकोट के राजा दलजी सोढ़ा की पुत्री थी। लोक मान्यता के अनुसार यह रूकणमी का अवतार कही जाती है। कहते हैं कि पक्षाघात के कारण नेतलदे पंगु हो गई थी, किन्तु पाणिग्रहण संस्कार होते ही, रामदेवजी की अलौकिक शक्ति से उसकी पंगुता दूर हो गई, और जब वह रामदेवजी के साथ फेरे लगाने लगी तब लोगों को हर्ष का पार नहीं रहा।
दसवाँ पर्चा – रानी नेतलदे की सखियों को चमत्कार दिखाना :
रामदेवजी जब ‘कुंवर कलेवे’ के लिए भीतर पधारे तब रानी नेतलदे की सहेलियों ने विनोद के लिए थाल में भोजन के स्थान पर मृत बिल्ली रख कर अर वस्त्र डाल दिया। जब वह थाल रामदेवजी के सम्मुख रखा गया तब रामदेवजी द्वारा वस्त्र उठाते ही बिल्ली जीवित होकर दौड़ गई, इतना ही नहीं रामदेवजी के चमत्कार से महल बिल्लियों से भर गया। कुछ लोगों का कहना है कि रामदेवजी की सास ने ही उनका चमत्कार देखने के लिए, नेतलदे की सखियों द्वारा वह मृत बिल्ली थाल में रखवाई थी।
ग्यारवहां पर्चा – सुगना बाई के बालक को पुनर्जीवित करना :
जिस रात अमरकोट में रामदेवजी का विवाह हुआ, उसी रात को किसी कारणवश सुगनाबाई के पुत्र की मृत्यु हो गई। अन्तर्यामी भगवान् रामदेवजी ने सुगना के दुःख को जान लिया और वे नेतलदे रानी एवं बारात सहित प्रात: से पूर्व ही वापिस पहुँच गये। .सुगना बाई के बालक की मृत्यु की इस दु:खद घटना का पता किसी को न था, कारण कि सुगना अपने कष्ट को अपने तक ही सीमित रखना चाहती थी, उसने विवाह के उस मांगलिक अवसर पर विघ्न डालना उचित नहीं समझा। रामदेवजी व रानी नैतलदे को बधाने के लिए सुगना नहीं आई तो उचित अवसर जान कर रामदेवजी ने सुगना को बुलाया और उदासी का कारण पूछा तो कुछ देर तक सुगना मौन रही, फिर उसने कृत्रिम प्रसन्नता लाने का प्रयास किया किन्तु अश्रुधारा प्रवाहित हो गई, वह कुछ न बोल सकी, उसका कण्ठ रुंध गया, सिसकती हुई अपने पुत्र को पुकारने लगी। रामदेवजी ‘बधावे’ से पूर्व ही अन्दर गये और दैविक शक्ति से परिपूर्ण अपने हाथ से मृतक बालक अपने भांजे का स्पर्श किया, वह पुनजीवित हो गया। रामदेवजी उसे अपनी गोदी में लेकर खेलाने लगे।
बारहववां पर्चा – वीरमदेव की गाय का बछड़ा जीवित करना :
वीरम देव के वहां एक बहुत सुन्दर तथा शुभ लक्षणों वाली गाय थी जो वीरमदेव और उनकी रानी को अत्यधिक प्रिय थी। इस गाय का बछड़ा किसी बीमारी से मर गया, जिससे गाय ने चारा-पानी ही छोड़ दिया और दिन-रात रम्भाती रही थी। इस घटना से वीरमदेवजी और उनकी रानी अत्यधिक दु:खी हुए और रानी ने तो खाना-पीना ही छोड़ दिया। संयोगवश बछड़े की मृत्यु के 3-4 दिन पश्चात् रामदेवजी अपने बड़े भाई व भाभीजी से मिलने के लिए उनके वहां पधारे। उन्होंने रानी को अत्यन्त दु:खी देखकर पूछा तो उसने अपने दु:ख का कारण बताते हुए आत्महत्या करने का विचार अभिव्यक्त किया और बछड़े की याद में रोने लगी।
रामदेवजी ने दयार्द्र होकर रानी को आश्वासन दिया और अपने लीले घोड़े पर सवार होकर उस स्थान पर पहुंचे जहां मृत बछड़े की चर्म एक झाड़ी पर सूख रही थी। उनहोंने अपनी चुटिये से उस चमड़े का स्पर्श किया और बोले कि तुम अपनी मां से जा मिलो। कहा जाता है कि इतना कहते ही सूखती हुई खाल में हाड-मांस की उत्पत्ति हो गई और प्राणों का संचार हो गया। बछड़ा दौड़ता हुआ रम्भाती हुई धेनु से जा मिला और रानी तथा वीरमदेवजी ने प्रसन्न- चित्त से अपने भाग्य की सराहना की।
तेरहवां पर्चा – रानी नेतलदे को चमत्कार :
कहते हैं कि एक समय रंगमहल में रानी ने रामदेवजी से पूछा कि आप तो सिद्ध पुरुष है बताइये मेरे गर्भ में क्या है (पुत्र अथवा पुत्री)? इस पर रामदेवजी ने कहा कि पुत्र है। और उसका नाम ‘सादा’ रखना है। रानी का संशय दूर करने के लिए रामदेवजी ने उसको आवाज दी। इस पर अपनी माता के गर्भ से बोल कर उस शिशु ने अपने पिता के वचनों को सिद्ध किया। साद’ अर्थात् आवाज के अर्थ से उसका नाम सादा रखा गया।
क्रमशः पोस्ट …..
बाबा रामदेवः इतीहास एवं साहित्य
लेखकः प्रो.(डॉ.) सोनाराम बिस्नोई
पूर्व अद्य्यक्ष राजस्थानी विभाग
जयनारायण व्यास वश्व विदद्य्यालय – जोधपुर
पूर्व अद्य्यक्ष राजस्थानी भाषा
साहित्य एवं संस्कृति अकादमी- बिकानेर
प्रेषित एवं संकलनः
मयुर.सिध्धपुरा- जामनगर
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