बाबा रामदेवजीः इतीहास एवं साहित्य
लेखकः प्रो.(डॉ.) सोनाराम बीस्नोई
अध्ययन की सुविधा के लिए उनके समग्र कृतित्व को दो शीर्षकों के अन्तर्गत प्रस्तुत किया जा सकता है – (क) लौकिक कार्य एवं (ख) अलौकिक कार्य।
लौकिक कार्यः-
यद्यपि रामदेवजी का व्यक्तित्व अलौकिकता से मण्डित है तथापि मानव-रूप में अवतरित होने के कारण बहुत से लौकिक कार्य भी उनके द्वारा सम्पन्न हुए हैं, जो आदर्शों से रंजित और लोक-मंगल की भावना से परिपूर्ण है।
हिन्दू-मुस्लिम एकता :-
राज्य लिप्सा, विस्तारवादी नीति, धर्मान्धता और प्रतिशोध की प्रखर भावना, अविश्वास तथा आशंका आदि कारणों से मुसलमानों और हिन्दुओं के युद्ध रामदेवजी से लगभग 160 वर्ष पूर्व से चले आ रहे थे, जिनमें रामदेवजी के पूर्वजों की सात पीढ़ियां संघर्षरत रहीं। उनके कई पूर्वज मारे गये। समर्थ होते हुए भी रामदेवजी ने प्रतिशोध की भावना का त्याग करके प्रेम और उदारता की पवित्र भावना से हिन्दू मुस्लिम युद्ध का अंत किया। धर्मान्धता के जहर और साम्प्रदायिकता के खार को मानव धर्म के मिठास से दूर किया। शिष्टाचार, अतिथि सत्कार, प्रेम तथा अलौकिक प्रतिभा और लोक-कल्याणकारी मानव धर्म के दिव्योपदेश से मुस्लिम पीरों को ऐसा प्रभावित किया कि उन्होंने मुस्लिम धर्मगुरुओं के गढ़ अजमेर में जाकर रामदेवजी के मानव कल्याणकारी सन्देश का मुस्लिम समाज में प्रचार किया। इससे प्रेरित होकर मुस्लिम लोग भी रामदेवजी को पूजने लगे, उनका उपदेश मानने लगे, जिससे हिन्दू-मुस्लिम समाज में व्याप्त साम्प्रदायिकता का विष धीरे-धीरे उतरने लगा।
आक्रोश, आशंका और प्रतिशोध जैसी दुर्भावनाओं के स्थान पर प्रेम, विश्वास, क्षमा और सौहार्द्र जैसी पवित्र भावनाएं उत्पन्न हुईं। इस प्रकार हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित हुई।
अछूतोद्धार : –
रामदेवजी ने अछूतोद्धार के लिए केवल उपदेश ही नहीं दिये अपितु तदनुकूल अपने आचरण और व्यवहार से अछूतोद्धार किया। अछूत जाति की कन्या डाली बाई को बहिन के रूप में अपने परिवार के साथ रखा और पाल-पोस कर बड़ी की। अछूत समझे जाने वाले लोगों के साथ वे प्रेमपूर्वक बैठकर भजन-भाव किया करते थे। अछूतोद्धार के महान उद्देश्य की प्राप्ति हेतु उन्हें राजपूत जाति का विरोध सहना पड़ा।
बहुत से निर्माण कार्य भी उनके द्वारा सम्पन्न हुए हैं। वस्तुतः इस प्रकार मान्यता का आधार भक्त-जनों की अपने इष्ट के प्रति श्रद्धा ही है। इस प्रकार के कुछ का का विवेचन यहां प्रस्तत किया जा रहा है,जो रामदेवजी द्वारा सम्पन्न होने की मान्यता के कारण ही अधिक महत्ता अर्जित किये हुए हैं।
रामदेवरा ग्राम की स्थापना : –
लोक-मान्यता के अनुसार यह ग्राम रामदेवजी द्वारा बसाया हुआ है। इसी ग्राम में स्थित एक प्राचीन कुए के नाम पर इस रूणाचा भी कहा जाता है। रामदेवजी द्वारा इस ग्राम को बसाने की लोक-मान्यता कुछ अन्य लोक-कथाओं तथा ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार असत्य प्रतीत होती है। एक लोककथा के अनुसार अजमाल छाहण बारू के क्षेत्र में आ कर पोकरण से 6 मील की दूरी पर अस्थायी रूप से रहे। वहीं पर उनके बड़े पुत्र वीरमदेव का जन्म हुआ जिसके नाम से ‘वीरमदेवरा’ नामक ग्राम बसाया गया। उसके बाद अजमाल वहां से 6 मील दूर जाकर रहे, जहां रामदेवजी का जन्म हुआ तथा उनके नाम पर ‘रामदेवरा’ ग्राम बसाया गया।
इस आधार पर यह सम्भावना सत्य प्रतीत होती है कि रामदेवजी ने यहीं से जाकर पोकरण को आबाद किया जिस पर कुछ वर्ष उनका अधिकार रहा। बाद में उनकी कन्या का विवाह रावळ मल्लीनाथ के पौत्र हमीर जगमालोत के साथ किया गया, तब पोकरण उसे दहेज में देकर रामदेवजी ने ‘रूणीचा’ (रामदेवरा) में आकर निवास किया। मुहता नैणसी कृत ‘मारवाड़ रा परगना री विगत’ तथा विश्वेश्वरनाथ रेउ कृत मारवाड़ के इतिहास से इस तथ्य की पुष्टि होती है।’
पर्चा बावड़ी का निर्माण :-
एक जनश्रुति के अनुसार यह माना जाता है कि रामदेवरा की भव्य बावड़ी का निर्माण ग्रामवासियों के लिए पानी की समुचित व्यवस्था हेतु स्वयं रामदेवजी ने करवाया था। यह भी कहा जाता है कि उनके समकालीन बोयते नामक एक सेठ ने इस बावड़ी के निर्माण में सहयोग दिया था। इसी सन्दर्भ में ऐसा भी सुनने में आता है कि रामदेवजी ने इस बावड़ी को केवल खुदवाया था एवं उनके तिरोभाव के बहुत पश्चात् मेवाड़ के निवासी दलजी नामक सेठ ने इसे प्रस्तरों से बंधवाया था।इस बावड़ी की दीवारों पर लगे हुए शिलालेखों से यह जनश्रुति निराधार सिद्ध होती है।
रामदेवजी के श्रद्धालु भक्तजनों का यह विश्वास रहा है कि इस बावड़ी के पवित्र जल के आचमन से असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है। सम्भवत: ऐसे भक्तजनों के श्रद्धा-प्रसूत जनश्रुति के फलस्वरूप इसे स्वयं रामदेवजी द्वारा निर्मित बावड़ी मानने से यह लोक-धारणा भी प्रचलित हो गई थी कि इस बावड़ी की जलनिधि में कूदने पर अनेक अंधों को नेत्र-ज्योति तथा पंगु व्यक्तियों को चलने की शक्ति मिली है और कुष्ट रोगों से ग्रसित रोगियों की देह कंचन हुई है। इसी लोक-धारणा के कारण यह बावड़ी ‘पर्चा बावड़ी’ के नाम से लोक-प्रसिद्ध हुई है। ‘पर्चा बावड़ी’ के इन पर्यों (चमत्कारों) में पूर्ण आस्था रखने वाले अनेक असाध्य रोग-ग्रस्त व्यक्ति इस बावड़ी में कूदे हैं। कुछ व्यक्तियों ने इस प्रकार कूद कर अपने प्राण त्यागे। इसे आत्महत्या का रूप मानते हुए सरकार द्वारा बावड़ी में कूदना वर्जित कर दिया गया तथा सावधानी के लिए लोहे की जाली द्वारा बावड़ी के अरी द्वार को बन्द करवा दिया गया है।
रामसरोवर तालाब का निर्माण : –
रूणीचा (रामदेवरा) ग्राम में एक विशाल तालाब है, जो कि रामसरोवर के नाम से प्रसिद्ध है। यह तालाब रामदेवजी ने ही खुदवाया था। इसी मान्यता से भक्त लोग इसके स्नान को गंगास्नान के तुल्य मानते हैं।
रूणीचा (रामदेवरा) को समस्त तीर्थों से श्रेष्ठ मानते हुए भक्त कवि जालू एक छंद में कहते हैं –
गंगा केदार अनै गोमत्तिय तीरथ वेद विचार तिसा।
आबू गिरनार अनै अचलेश्वर जीव उधार गया सुजिया।।
सब आरठ्य धाम रूणैचय सोभाय सगळां तीरथ हूंत सिरै।
अजमाल सुजाव धिनो अवतारिये कीरत थारिये देव करै।।
क्रमशः पोस्ट….
बाबा रामदेवः इतीहास एवं साहित्य
लेखकः प्रो.(डॉ.) सोनाराम बिस्नोई
पूर्व अद्य्यक्ष राजस्थानी विभाग
जयनारायण व्यास वश्व विदद्य्यालय-जोधपुर
पूर्व अद्य्यक्ष राजस्थानी भाषा
साहित्य एवं संस्कृति अकादमी-बिकानेर
प्रेषित एवं संकलन:
मयुर सिध्धपुरा- जामनगर
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